दलित क्या है? दलितों की समस्याओं के प्रमुख कारण और दलित चेतना के बारे हिंदीं में पढ़ें
दलित शब्द का अर्थ
दलित का मतलब पहले पिडीत, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदाहुआ, विनष्ट हुआ करता था, लेकिन अब अनुसूचित जाति को दलित बताया जाता है, अब दलित शब्द पूर्णता जाति विशेष को बोला जाने लगा हजारों वर्षों तक अस्पृश्य या अछूत समझी जाने वाली उन तमाम शोषित जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्त होता है जो हिंदू धर्म शास्त्रों द्वारा हिंदू समाज व्यवस्था में सबसे निचले (चौथे) पायदान पर स्थित है।
और बौद्ध ग्रन्थ में पाँचवे पायदान पर (चांडाल) है संवैधानिक भाषा में इन्हें ही अनुसूचित जाति कहां गया है। भारतीय जनगनणा 2011 के अनुसार भारत की जनसंख्या में लगभग 16.6 प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है। आज अधिकांश हिंदू दलित बौद्ध धर्म के तरफ आकर्षित हुए हैं और हो रहे हैं, क्योंकी बौद्ध बनने से हिंदू दलितों का विकास हुआ हैं।
दलितों की समस्याओं के प्रमुख कारण
- अशिक्षा: दलितों की समस्याओं के मूल में अशिक्षा ही है। अशिक्षित व्यक्ति बहुत जल्द अंधविश्वास और परंपराओं पर विश्वास कर लेते हैं। अनपढ़ व्यक्ति को आज भी देखा जा सकता है कि बीमार होने पर वह डॉक्टर के पास जाने की अपेक्षा देवताओं के पास मनोनीत के लिए चले जाते हैं, या झाड़ फूंक करने वाले ढोंगियों के पास चले जाते है, और अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं। व्यवहारिक तौर पर भी देखें तो समाज के धनी और चालाक लोग कम मजदूरी देकर इन अशिक्षित लोगों से अधिक काम लेते हैं, और किसी विशेष समय इनको क़र्ज़ देकर हमेशा के लिए सुद के नाम पर इनका शोषण करते रहते हैं।
- गरीबी: दलितों के पास धन के नाम पर अपने शरीर अलावा और कुछ भी नहीं, और गरीबी के कारण उनको अनेक बीमारियां भी आकर जकड़ लेती है, ऐसे में दो समय की रोटी को तरसने वाला आदमी अपना इलाज कैसे करवा सकता है। ऐसे में दलित घुट-घुटकर मरने को मजबूर हो जाते हैं।
- भेदभाव: हमारा समाज हमेशा से भेदभाव पर आधारित दलितों के शोषण पर कायम रहा है। भले ही संविधान में दलितों के साथ भेदभाव और छुआछूत को कानूनी अपराध घोषित कर दिया गया है। लेकिन व्यवहार में जहां था आज भी उनको अपमानित किया जा रहा है, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में तो बहुत ज्यादा भेदभाव बढ़ता जाता है।
- जाति प्रथा: मानव मात्रा प्रारंभ से पति का नहीं होता है, निम्न जाति का वाल्मीकि भी अपने गुणों के कारण महर्षि बन गया तो ब्राह्मण जाति का रावण भी अपनी बुरे कर्म के कारण नीच कहलाया। इसका अर्थ है कि मनुष्य जन्म से नहीं बल्कि कर्म से उच्च या नीच होता है। की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उच्च उच्च जाति के लोग बिना उसके आचरण पर विचार किए उन्हें नीच मान लेते हैं। दलित आदि काल से ही इस तरह के शवसन और तिरस्कार के शब्द है अभ्यस्त हो गए हैं।
- छुआछूत या अस्पृश्यता: भारतीय संस्कृति में विदेशों से आए लोगों जैसे ईसाई, मुसलमान और पारसियों तक को अपना लिया गया। विभिन्न धर्मों के मानने वालों को भी अपना लिया गया और उनके साथ इंसानियत का व्यवहार किया जाता है, लेकिन अपने ही धर्म के दलित लोगों से घृणा की जाती रही है और उनसे दूरी बनाकर रखी गई है। इसी कारण से स्वयं दलितों के भी मन में अपने लिए हीनता की भावना उत्पन्न हो चुकी है कारण का पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी कही जा सकती है कि मानव को मानव के समान व्यवहार करने या मानव को छूने के लिए हमें कानून का सहारा लेना पड़ रहा है।
दलित चेतना क्या है?
दलित क्रांति या दलित चेतना से अभिप्राय शास्त्रों का प्रतिकार करके जाति और वर्ण पर आधारित व्यवस्थाओं के प्रति आक्रोश। भले ही आज भी इस क्रांति और चेतना का मूल आधार वेद और मनु का प्रतिकार करना है।
दलित क्रांति या दलित चेतना का संबंध वास्तव में समाज के सुविधा संपन्न लोगों का विरोध करके दबे-कुचले लोगों के हितों के लिए काम करना है। भारतीय समाज के चिंतकों को लगा कि इस समस्या का समाधान केवल राजनीतिक हस्तक्षेप के माध्यम से ही हो सकता है, और इसी कारण शिक्षण संस्थानों से लेकर नौकरियों और चुनाव में भी उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
भारत में दलित चेतना की आधुनिक मूल्यों के आगमन के साथ हुई थी, हालांकि इसके लिए कई अन्य कारण भी जिम्मेदार थे जिनका वर्णन निम्न प्रकार से किया जा रहा है:-
- आधुनिक शिक्षा, वैज्ञानिक, तार्किक और वैश्विक दृष्टि का प्रसार।
- औधोगिकरण नगरीकरण के कारण योग्यता एवं स्थान का महत्व।
- सुधार आंदोलनों का प्रभाव जो ज्योतिबा फुले, श्री नारायण गुरु आदि ने प्रारंभ किया था।
- स्वतंत्रता, समानता सामाजिक न्याय जैसे मुल्लों का प्रसार।
- राजनीतिक दलों में मौतों को पाने के लिए इनका एकीकरण।
- यातायात और संचार के साधनों का विकास।
- महात्मा गांधी और अंबेडकर जैसे नेताओं द्वारा दलितों के हितों के लिए जागरूकता पैदा करना आदि।
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निष्कर्ष: इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अनेक वर्षों तक भारत में दलितों के साथ अन्याय और शोषण होता रहा था जिस के विरोध में अनेक समाज सुधारकों और चिंतकों ने आवाज उठाई थी। दलितों को राजनीतिक क्षेत्र में आरक्षण दिला कर ऊंची जातियों की तरह संसद में प्रतिनिधि बनाने का अवसर दिलाने में मीडिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आगे चलकर सरकारी नौकरियों में भी दलितों के आरक्षण की व्यवस्था की गई ताकि उनका समग्र विकास हो सके।
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