भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का परिचय देते हुए उसकी आवश्यकता और महत्व पर प्रकाश डालिए।
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का परिचय
क्या किसी ऐसे राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती, जिसमें न्यायापालिका या न्यायाधिकरण की कोई व्यवस्था न हो? ’’ भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश का उच्चतम् न्यायालय है, यह भारतीय न्याय व्यवस्था की शीर्षक संख्या है।
किसी भी सरकार की श्रेष्ठता उसकी न्याय व्यवस्था की श्रेष्ठता पर निर्भर करती है संघात्मक व्यवस्था में संघ और राज्य सरकारों को अपनी नर्धारित सीमाओं में रहकर ही कार्य करना पड़ता है इस प्रकार न्यायपालिका आज व्यक्ति और व्यक्ति के मध्य व्यक्ति और राज्य के मध्य, राज्य और राज्य के मध्य, संघ एवं राज्य के मध्य उत्पन्न विवादों का निर्णय ही नहीं करती अपितु वह मौलिक अधिकारों के रक्षक और संविधान के संरक्षक के रूप में भी कार्य करती है।
इसकी उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए लार्ड ब्राइस ने लिखा है’’ यदि न्याय का दीपक अधेरे में बझु जाये तो अँधेरा कितना होगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।’’ भारतीय संविधान द्वारा भारत में संधीय शासन की व्यवस्था की गयी है जिसके अन्तर्गत संघ एवं राज्यों के लिये न्याय पालिका का संगठन पृथक-पृथक न होकर सम्पूर्ण देश की एकीकृत एवं संगठित न्याय व्यवस्था है।
उच्चतम् न्यायालय देश का सर्वोच्च एवं अंतिम न्यायालय है, जिसके अधीन राज्यों के उच्च न्यायालय एवं उच्चन्यायालयों के अधीन अन्य अधीनस्त न्यायालय है इस प्रकार भारत के समस्त न्यायालय एक कड़ी के रूप में बँधे हुए है।
भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है जिसे भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है।
भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त हैं। भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारतीय संविधान के संरक्षक की है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों की नींव हैं।
उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय अदालत है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है। इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्च्तम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है। भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को हुआ और उसके बाद से इसके द्वारा 24,000 से अधिक निर्णय दिए जा चुके हैं।
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता और महत्व
उच्चतम न्यायालय की आवश्यक्ता एवं महत्व के विषय में भारत के भूतपूर्व महान्यायवादी श्री. एम. सी. सीतलवाड ने कहा है। ‘‘उच्च्तम न्यायालय संघ एवं राज्य सरकारो के पारस्परिक विवादो का निपटारा एवं संविधान का स्पष्टीकरण करेगा।
नागरिको के मौलिक अधिकारो की रक्षा एवं जनता के राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों को व्यवहारिक रूप प्रदान करेगा।’’ सर्वोच्च न्यायालय के महत्व को मुख्य रूप से निम्नांकित शीर्षक के अन्तर्गत विभाजित किया जा सकता है।
- मौलिक अधिकारो के संरक्षक के रूप में– सर्वोच्च न्यायालय नागरिको को प्राप्त मौलिक अधिकारो का सरंक्षक भी है। यदि कार्यपलिका किसी व्यक्ति के अधिकारो का हनन कर ती है तो न्यायालय लेख जारी करके उस व्यक्ति के मौलिक अधिकारो की रक्षा करता है। इसके अलावा संसद या विधान मण्डलों द्वारा बनाये गये ऐसे कानूनो को न्यायालय अवैध घोषित कर देताहै जो नागरिको के मौलिक अधिकारो का हनन करते हैं।
- संविधान के संरक्षक के रूप में– संविधान के सरं क्षक के रूप में उच्चतम न्यायालय केन्द्र (संसद) एवं राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा बनाये गये कानूनों को अवैध घोषित करता है जो संविधान के विरूद्ध होते हैं।
- चुनाव याचिकाओं की सुनवार्इ– न्यायपालिका में राज्यो एवं केन्द्रीय क्षेत्रों के प्रत्याशी चुनाव याचिकाएँ दायर करते है।। इस प्रकार स्पष्ट है कि उच्चतम न्यायालय अपनी निष्पक्ष एवं स्वतंत्र न्यायप्रणाली के द्वारा न्याय पद्रान करके लोकतंत्र के प्रति नागरिको में विश्वास की भावना उत्पन्न करता है।
राष्ट्रपति चुनाव भारत में किस तरह से होता है, जानिए हिंदी में पढ़ें अतः संविधान के अनुसार भारत की शीर्ष न्यायपालिका यहाँ का सर्वोच्च न्यायालय है। संविधान के अनुसार इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा अधिक-से-अधिक सात न्यायाधीश होते हैं। संसद् कानून द्वारा न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन कर सकती है।
वर्तमान समय में उच्चत्तम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश (कुल 31 न्यायाधीश) हैं। मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से परामर्श अवश्य लेता है।
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