शिक्षा का अधिकार पर निबंध । शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009

भारत में शिक्षा का अधिकार विषय पर निबंध शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का बड़ा महत्व हैं। शिक्षा को जीवन का आधार माना गया हैं, अर्थात शिक्षा ही जीवन हैं। किसी भी देश के आधुनिक या विकसित होने का प्रमाण उस देश के नागरिकों के शिक्षा स्तर पर निर्भर करता हैं।

मानव सभी जीवों और प्राणियों में इसलिए श्रेष्ट हैं, क्युकि वह शिक्षित हैं, उन्हें जीवन में सही तरीके से जीने की शिक्षा प्राप्त हैं। आधुनिक समय में शिक्षा को ही किसी राष्ट्र या समाज की प्रगति का सूचक समझा जाता हैं।

शिक्षा का अधिकार

हमारे देश में आजादी के बाद शिक्षा के महत्व को समझते हुए सभी को शिक्षा की दिशा में काम करते हुए इसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 तक 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया।

सभी को निशुल्क और गुणवता पूर्ण शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से राज्य एक केन्द्रीय स्तर पर शिक्षक पात्रता परीक्षा का तत्वाधान किया गया। जो युवक आगे बढ़कर एक शिक्षक बनना चाहता हैं, उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य रूप से उतीर्ण करनी होती हैं।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम की विशेषताएं

  • देश के सभी बच्चे जो 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के हैं, उन्हें निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाना।
  • किसी भी बालक को किसी शुल्क अथवा शिक्षा पर खर्च के आधार पर शिक्षा देने से वंचित नही किया जा सकता।
  • यदि 14 वर्ष से कम आयु का बच्चा नियमित रूप से विद्यालय कभी नही गया, इस एक्ट के तहत उनके उचित स्तर की क्लास में प्रवेश दिलाया जा सकता हैं।
  • यदि किसी क्षेत्र में कोई विद्यालय नही हैं, तो राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व हैं कि वे 3 वर्ष की अवधि तक कोई विद्यालय का निर्माण सुनिश्चित करे।
  • वर्षपर्यन्त किसी भी स्टूडेंट को किसी भी कक्षा में प्रवेश दिया जा सकेगा।
  • किसी तरह के प्रमाण पत्र यथा-जन्म प्रमाण, आय प्रमाण पत्र न होने की स्थति में भी उसे प्रवेश से नही रोका जाएगा।
  • पांचवी तक विधिवत शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् प्रत्येक स्टूडेंट्स को उनकी शैक्षिक योग्यता का प्रमाण पत्र दिया जाए।
  • विद्यालय में मुलभुत सुविधाए, पुस्तकालय, खेल मैदान,कक्षा-कक्ष और अन्य सुविधाएं राज्य सरकारे सुनिश्चित करे।
  • प्रति 40 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक का प्रावधान किया गया हैं, शिक्षकों की कमी पड़ने पर राज्य सरकार शिक्षक भर्ती निकाले।
  • शिक्षक बनने के पश्चात् पांच वर्ष तक उस अध्यापक को अपने प्रोफेशनल कोर्स की डिग्री देना अनिवार्य हैं, अन्यथा उन्हें नौकरी से निकाला जा सकेगा।
  • शिक्षा संस्थान यदि अपने आरम्भिक तीन वर्षो में सभी मूलभूल सुविधाएँ उपलब्ध नही करवा पाता हैं, तो उसकी मान्यता रद्द की जाएगी।
  • सभी निजी और सरकारी विद्यालयों में पहली क्लास में 25 फीसदी गरीब बच्चों के प्रवेश आवश्यक।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम में कुल वित्तीय खर्च में राज्य और केंद्र की सामूहिक भागीदारी होगी।

Bharat ke Samajik Mudde in Hindi – Social Issues in India

शिक्षा का अधिकार की सीमाएं / कमियां

एक तरफ सभी के लिए शिक्षा अधिकार अधिनियम में बहुत सारी खुबिया और विशेषताओं होने के बावजूद भी कुछ कमिया भी हैं, जो इस प्रकार हैं।

  • इस एक्ट में 0 से 6 वर्ष के बच्चों के बारे में विशेष ध्यान नही दिया गया हैं।
  • 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों की शिक्षा के भी कोई प्रावधान नही हैं।
  • अंतराष्ट्रीय चाइल्ड राईट अग्रीमेंट में 18 वर्ष तक बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का प्रावधान हैं, जो शिक्षा अधिनियम 2009 में नही हैं।

शिक्षा का अधिकार का महत्व

इस राईट टू एजुकेशन एक्ट की कुछ सीमाओं को एक तरफ कर दिया जाए तो यह कानून 6 से 14 वर्ष की आयुसीमा के विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित हो सकता हैं.इस अधिनियम से प्राथमिक शिक्षा और उच्च प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा की नीव को भी मजबूत किया जा सकेगा।

इस एक्ट का मुख्य पात्र कम आयवाले परिवार के बच्चे, मजदूरों, किसानों व गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले सभी सुकुमारों के लिए भविष्य में नई दिशा और राह दिखाने में मददगार साबित हो सकता हैं.इस अधिनियम के पारित होने के साथ ही प्राथमिक विद्यालयों में प्रवेश दर उपस्थति में बढ़ोतरी और बिच में विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी करने में मदद कर सकता हैं। प्रत्येक व्यक्ति के सामजिक आर्थिक विकास के लिए जीवन में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका हैं।

निष्कर्ष: शिक्षा न केवल बच्चे के वर्तमान को बेहतर बनाती हैं, बल्कि उनके सुनहरे भविष्य के रूप में भी काम आती हैं। शिक्षा के सभी पहलुओ पर विचार करने के बाद शिक्षा के इस मौलिक अधिकार का महत्व स्वत सिद्ध हो जाता हैं।

खेद इस बात का हैं क़ि आजादी के 60 साल बाद जिस शिक्षा के अधिकार को 1 अप्रैल 2010 में मौलिक अधिकारों के रूप में दर्जा देकर पारित किया। काश ये 1 अप्रैल 1990 के दिन ही हो जाता तो हमारी कितनी पीढियाँ इसका फायदा उठा सकती थी, आज हमारी शिक्षा और प्रगति का एक नया आयाम छूते।

मगर देर ही सही दुरस्त आए, यह शिक्षा का मौलिक अधिकार 6 से 14 वर्षो के बालक-बालिकाओं के लिए निशुल्क और गुणवतापूर्ण शिक्षा की सहायता से उन्हें समान रूप से शिक्षा और रोजगार के समान अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित करवाएगा। इससे हमारा भारत शिक्षित और विकसित बनेगा।

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