मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों के बीच अन्तर पर प्रकाश डालिए

मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों के बीच अन्तर पर प्रकाश डालिए|

मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकार हमें राजनीतिक अधिकार प्रदान करते हैं जो कि व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक होते हैं जबकि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के माध्यम से हमें सामाजिक और आर्थिक अधिकार प्राप्त होते हैं|

इन तत्वों का कार्य एक जन-कल्याणकारी राज्य (welfare state) की स्थापना करना है। मौलिक अधिकारों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 में एवं नीति निर्देशक सिद्धांतों को अनुच्छेद 36 से 51 में उल्लेख किया गया है

मौलिक अधिकार और नीतिनिर्देशक तत्वों के मध्य अंतर :- 

1. मौलिक अधिकार के द्वारा राज्य को यह आदेश दिया गया है कि उसे लोगो के इन अधिकारों मे अनुचित हस्तक्षेप नही करना चाहिए। राज्य के नीति-निर्देशक तत्व इसके विरुद्ध यह बतलाते हैं कि राज्य को क्या करना चाहिए। 

2. मौलिक अधिकारों की प्रकृति समान्यतः नकारात्मक है क्योकि वे सरकार पर कुछ प्रतिबंध आरोपित करते हैं। मूल अधिकार राज्य और सरकार के विरुद्ध प्राप्त होते हैं, अतः राज्य और सरकार द्वारा उनका उलंघन नही किया जा सकता है। जबकि निर्देशक तत्व सकारात्मक हैं, क्योकि वे राज्य और सरकार को किन्ही लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं।

3. मूल अधिकार सापेक्ष हैं, क्योकि मूल अधिकारों पर संविधान मे प्रतिबंध भी आरोपित हैं। जबकि निर्देशक तत्वों पर कोई प्रतिबंध आरोपित नहीं हैं। यदि सरकार सरकार वित्तीय और प्रशासनिक रूप से सक्षम है तो उन्हें प्रभावी रूप से लागू किया जा सकता है।

 4. लोकतन्त्र एक बहुआयामी अवधारणा है जिसमें आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पक्ष होते हैं। जहां मूल अधिकारों का लक्ष्य राजनीतिक लोकतन्त्र की स्थापना करना है, वही निर्देशक तत्वों का लक्ष्य सामाजिक, आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना करना है।

5. मौलिक अधिकार उसी तिथि से आस्तित्व मे आ गए जब से संविधान लागू हुआ किन्तु नीति निर्देशक तत्व का कार्यान्वयन समय और परिस्थितियों के अनुसार धीरे-धीरे ही संभव है। वास्तव मे यह सिद्धान्त सामाजिक परिवर्तन की एक निरंतर एवं दीर्घकालिक योजना है जिसे केंद्र और राज्य सरकारें अपने संसाधनों के अनुसार लागू करेगी।

6. मूल अधिकार वैधानिक दृष्टि से बाध्यकारी है जबकि नीति-निर्देशक तत्वों के पीछे नैतिक शक्ति अथवा जनमत है। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश के. एस. हेगड़े के अनुसार नीति-निर्देशक सिद्धान्त न्याययोग्य न होते हुए भी भी संविधान के आदेश है जिनका पालन करना प्रत्येक सरकार का कर्तव्यघोषित किया गया है।

 इसप्रकार मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्वों के मध्य कुछ आधारभूत अंतर हैं। लेकिन इन दोनों के बीच संरचनात्मक भिन्नता होते हुए भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करके सरकार वृहत मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। नीति-निर्देशक तत्व मौलिक अधिकारों को समवेशी और सर्वसुलभ बनाने का कार्य करते हैं।

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