मजदूर आंदोलन की प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिए।
भारत में मजदूर आंदोलन उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आधुनिक उद्योगों की स्थापना के साथ ही भारत में मजदूर संघों की गतिवधिया एवं उनके अस्थित्व की शुरूआत देखी गई। इस दिशा में सर्वप्रथम कदम था रेलवे का विकास जो आधुनिक भारतीय कांमगार वर्ग आंदोलन का अग्रदूत सिद्ध हुआ। औद्योगिक जीवन की कठिनाइयों को खत्म करने के लिए मजदूर संघवाद की प्रारंभिक अवस्था मे श्रमिकों ने अपनी मांगे प्रस्तुत की थीं।
मजदूर आंदलोन की प्रथम अभिव्यक्ति 1777 ई. में नागपुर स्थित एम्प्रेस मिल के कामगारों की वेतन दरों के विरोध में हडताल थी। इस शताब्दी के अंतिम दशक तक किसी भी व्यवस्थित मजदूरा संघ का गठन नही हुआ था। भारतीय श्रमिकों की दशा का अध्ययन करने उसमें सुधारात्मक कार्य करने तथा भारतीय कामगारों की दशा को सुधारने के उदेश्य से 1875 ई. (जब कारखाना श्रमिकों की स्थितियों की जाच के लिए प्रथम पांच समिति नियुक्त की गई थी) से 1890 ई0 तक (जब भारतीय श्रम आयोग की नियुक्ति की गई) की कालावधि मे कई प्रयास किए गए थे।
बम्बई विधानसभा में श्रमिकों की कार्य अवधि के विषय में 1878 ई में सोरावजी शपूर जी बंगाली ने एक विधेयक प्रस्तुत करने का प्रयास किय, लेकिन इसमें वे असफल रहे। रमिक नेता शाशिपाद बनर्जी ने 1870 ई. में श्रमिकों में जागरूकता लाने लाने हेतु मजदूरों का एक क्लब स्थापित किया और भारत श्रमजीवी नामक पत्रिका का सम्मपादन किया।
1890 ई. में एम लोखण्डे ने बाम्बे मिल हैंड्स एसोसिशन की स्थापना की जिसे भारत में गठित प्रथम श्रमिक संघ कहा जाता है। 1897 ई. में कोष स्थायी सदस्य तथा स्पष्ट नियमों के साथ पहली बार एक मजदूर संगठन अमलगमेटिड सोसायी आॅफ रेलवे सवेन्टस ऑफ हण्डिया एण्ड बर्मा का गठन हुआ।
1908 ईख् में राष्टवादी नेता बाल गंगाधर तिलक को 8 वर्ष का कारावास होने पर बम्बई के कमड़ा मजदूर लगभग एक सप्ताह तक हड़ताल पर रहे। यह मजदूरो की पहली राजनीतिक हड़ताल थी। आंदोलन के आरम्भिक दिनों में रमिकों की जिस समस्या ने लोगों का ध्यान खींचा, वह करारबद्ध की व्यवस्था थी। यह उ भारतीयों की कार्य तथा जीवन संबंधी समस्याओं को संबोधित करता था जो बहुत बड़ी संख्या ब्रिटिश उपनिवेशों तथा अन्य देशों में भेजजे जाते थे।
समान्यतः 1830 ई से ही भारतीय करारबद्ध श्रमिकों को देश से बाहर भेजा जाने लगा और 1922 ई. तक इस प्रथा के समाप्त हो जाने तक यह स्थिति बनी रही। दक्षिण अफ्रीका में महत्मा गांधी ने करारबद्ध श्रमिकों के बीच श्रमिक क्षेत्र में अपने कार्य की शुरूआत की थी। आगे चलकर उन्होंने अहमदाबाद के कमडा मिल श्रमिक का गठन किया और उसके विकास में सहायक रहे।
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श्रमिक संघों के गठन के कारण
श्रमिक संघों के गठन संबधी प्रमुख कारणों में सर्वोंपरि थे- ग्रामीण गरीबी तथा ऋणग्रस्तता। गरीबी के कारण शहर आने वाले श्रमिक उन बिचैलियों कीदया पर निर्भर होते थे, जो उन्हें नौकरी दिलाने में मदद करते थे। ये श्रमिक देश के विभिन्न भागों से आते थे और धर्म, जाति, सम्प्रदाय एवं भाषा भेद के कारणों से एक दूसरे के स्वभाव से परिचित नहीं थे।
इस परिवेश में रहने के कारण श्रमिकों को एकता एवं संगठन में निहित शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने में काफी समय लगा। इसी बीच प्रथम विश्व युद्ध तथा मन्दी के कारण आर्थिक संकट का भार श्रमिकों के कंधों पर आ पड़ा। भारत में यह स्थिति संगठित मजदूर आंदोलन के विकास के लिए एकदम उपयुक्त थी।
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