भारत छोड़ो आंदोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी: क्रिप्स मिशन के भारत आगमन से भारतीयों को काफी उम्मीदें थीं, किन्तु जब क्रिप्स मिशन खाली हाथ लाटैा तो भारतीयों को अत्यन्त निराशा हुई। अत: 5 जुलाई, 1942 को ‘हरिजन’ नामक पत्रिका में गाँधीजी ने उद्घोष कि- ‘‘अंग्रेजो भारत छोड़ो। भारत को जापान के लिए मत छोड़ों, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ा जाय। महात्मा गांधीजी का यह अन्तिम आन्दोलन था जो सन् 1942 में चलाया गया था।
1. भारत छोड़ो आंदोलन के कारण:
- क्रिप्स मिशन से निराशा- भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई थी कि क्रिप्स मिशन अंग्रेजों की एक चाल थी जो भारतीयों को धोखे में रखने के लिए चली गई थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण उसे वापस बुला लिया गया था।
- बर्मा में भारतीयों पर अत्याचार- बर्मा में भारतीयों के साथ किये गए दुव्र्यवहार से भारतीयों के मन में आन्दोलन प्रारम्भ करने की तीव्र भावना जागृत हुई।
- द्वितीय विश्व युद्ध के लक्ष्य के घोषणा- ब्रिटिश सरकार भारतीयों को भी द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाई में सम्मिलित कर चुकी थी, परन्तु अपना स्पष्ट लक्ष्य घोषित नहीं कर रही थी।
- आर्थिक दुर्दशा- अगेंजी सरकार की नीतियों से भारत की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब हो गई थी और दिनों-दिन स्थिति बदतर होती जा रही थी।
- जापानी आक्रमण का भय- द्वितीय विश्व युद्ध के दारैान जापानी सेना रंगनू तक पहुंच चुकी थी, लगता था कि वे भारत पर भी आक्रमण करेंगी।
2. भारत छोडो आंदोलन का निर्णय:
14 जुलाई, 1942 मे बर्मा में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में ‘भारत छोड़़ो प्रस्ताव’ पारित किया गया। 6 और 7 अगस्त, 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक हुई। गाँधीजी ने देश में ‘भारत छोड़़ो आन्दोलन’ चलाने की आवश्यकता पर बल दिया। गाँधीजी ने नारा दिया- ‘‘इस क्षण तुम में से हर एक को अपने को स्वतन्त्र पुरुष अथवा स्त्री समझना चाहिए और ऐसे आचरण करना चाहिए मानों स्वतन्त्र हो। मैं पूर्ण स्वतन्त्रता से कम किसी चीज से सन्तुष्ट नहीं हो सकता। हम करेंगे अथवा मरेंगे। या तो हम भारत को स्वतंत्र करके रहेंगे या उसके पय्रत्न में प्राण दे देगें।’’, ‘‘करो या मरो।’’
3. भारत छोड़ो आंदोलन का आरम्भ और प्रगति:
8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त की रात को गांधीजी सहित कांग्रेस के समस्त बड़े नेता बन्दी बना लिए गये। गाँधीजी के गिरफ्तार होने के बाद अखिल भारतीय कांगे्रस समिति ने एकसूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया और जनता को ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में सम्मिलित होने के लिए आव्हान किया। जनता के लिए निम्न कार्यक्रय तय किए गये-
- आन्दोलन में किसी प्रकार की हिंसात्मक कार्यवाही न की जाए।
- नमक कानून को भंग किया जाए तथा सरकार को किसी भी प्रकार का कर न दिया जाए। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के प्रति दुव्र्यवहार का विरोध।
- सरकार विरोधी हड़तालें, प्रदर्शन तथा सार्वजनिक सभाएं करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया जाए।
- मूल्यों में असाधारण वृद्धि, आवश्यक वस्तु उपलब्ध न होने के विरोध में।
- पूर्वी बंगाल में आतंक शासन के खिलाफ।
4. भारत छोड़ो आंदोलन की विफलता के मुख्य कारण:
- आन्दोलन की न तो सुनियोजित तैयारी की गई थी और न ही उसकी रूपरेखा स्पष्ट थी, न ही उसका स्वरूप । जनसाधारण को यह ज्ञात नहीं था कि आखिर उन्हें करना क्या है?
- सरकार का दमन-चक्र बहुत कठोर था और क्रान्ति को दबाने के लिए पुलिस राज्य की स्थापना कर दी गयी थी, फिर गांधीजी के विचार स्पष्ट नहीं थे।
- भारत में कई वर्गो ने आन्दोलन का विरोध किया।
- कांग्रेस के नेता भी मानसिक रूप से व्यापक आन्दोलन चलाने की स्थिति में नहीं थे ।
- आन्दोलन अब अहिंसक नहीं रह गया था। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरूद्ध सशक्त अभियान था ।
5. भारत छोडो आंदोलन के महत्व तथा परिणाम (Bharat Chhodo Andolan ka mahatva)
- ब्रिटिश सरकार ने हजारों भारतीय आन्दोलनकारियों को बन्दी बना लिया तथा बहुतों को दमन का शिकार होकर मृत्यु का वरण करना पड़ा।
- अंतर्राष्ट्रीय जनमत को इंग्लैण्ड के विरूद्ध जागृत किया । चीन और अमेरिका चाहते थे कि अंग्रेज भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र कर दें।
- इस आंदोलन ने जनता में अंग्रेजों के विरूद्ध अपार उत्साह तथा जागृति उत्पन्न की।
- इस आन्दोलन में जमींदार, युवा, मजदूर, किसान और महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। यहां तक कि पुलिस व प्रशासन के निचले वर्ग के कर्मचारियों ने आंदोलनकारियों को अप्रत्यक्ष सहायता दी एवं आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति दिखाई।
- भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति मुस्लिम लीग ने उपेक्षा बरती, इस आंदोलन के प्रति लीग में कोर्इ उत्साह नहीं था। कांग्रेस विरोधी होने के कारण लीग का महत्व अंग्रेजों की दृष्टि में बढ़ गया।
1857 की क्रांति के कारण । 1857 के विद्रोह की असफलता के कारण और प्रभाव
सन् 1942 में क्रिप्स मिशन ने मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को और अधिक प्रोत्साहित किया, क्रिप्स के प्रस्तावों से पृथक्करण शक्तियों को बढ़ावा मिला, जिन्ना अब मुसलमानों का एकमात्र प्रतिनिधि और पाकिस्तान का प्रतीक बन गया। अब कांग्रेस और मुस्लिम लीग के सम्बन्ध बहुत बिगड़ गये, मुस्लिम लीग अब पाकिस्तान के अतिरिक्त किसी भी बात पर समझौते के लिए तैयार नहीं थी, आगे चलकर अंग्रेजों ने भी पाकिस्तान निर्माण का समर्थन किया।
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